Saturday, June 20, 2020

पिता - बिना किसी स्वार्थ का रिश्ता (के०एम०जी०) Father Day Special

#Father Day Special  *के०एम०जी०मन_की_बात_भाग-२०*
मैं कमलेश मान्टा के०एम०जी० आज आप लोगो को ईश्वरीय रूप पिता का हमारे जीवन मे क्या महत्व है बस इसी पर चर्चा करूँगा।

एक सच्चा और बिना किसी स्वार्थ का रिश्ता केवल माँ बाप का अपने बच्चो के प्रति होता है इस रिश्ते में कोई भी स्वार्थ नही होता क्योंकि हर माँ बाप यही चाहते है कि हमारे बच्चे हमसे भी ज्यादा तरकी करें। बाकी दुनिया मे जितने भी रिश्ते है वो केवल स्वार्थ से ही चलते है,इनमे स्वार्थ कूट-कूट के भरा होता है।
जीवन में पिता का होना बहुत जरुरी होता है बिना पिता के जीवन मानो बीना छत के घर, बीना आसमान के जमीन का होना है| पिता का जीवन में बहुत बड़ा भाग होता है जिसकी व्याख्या करना बेहद मुश्किल है....
पिता न होते तो घर नहीं चलता। बिना पिता के दुनिया कभी नहीं अपनाती।
पिता से ही नाम है और पहचान है, माता पिता एक वो अनमोल रत्न है जिनके आशीर्वाद से दुनिया की सबसे बड़ी कामयाबी भी हांसिल की जा सकती है
माता पिता ही है जो हमें सच्चे दिल से प्यार करते हैं बाकी इस दुनिया में सब नाते रिश्तेदार जुठे होते हैं.
पिता हमें पढ़ाते हैं लिखाते हैं, एक कामयाब इन्सान बनाते है। जब बच्चे को कामयाबी हांसिल होती है चाहे वो कितनी बड़ी हो चाहे कितनी छोटी माता पिता को लगता है की ये कामयाबी उन्हें मिली है।
पता नहीं क्यों हमे हमारे पिता इतना प्यार करते हैं, दुनिया के बैंक खाली हो जाते हैं मगर पिता की जेब हमेशा हमारे लिए भरी रहती हैं पता नहीं जरुरत के समय न होते हुए कहाँ से पैसे आ जाते हैं!
भगवान के रूप में माता-पिता हमें एक सौगात हैं जिनकी हमें सेवा करनी चाहिए और कभी उनका दिल नहीं तोडना चाहिए।


के०एम०जी०

रोहड़ू क्षेत्र से

धन्यवाद।

हैप्पी फ़ादर डे....

👏

Friday, June 5, 2020

विश्व पर्यावरण दिवस पर वृक्ष का महत्व बताते के०एम०जी०


एक वृक्ष का महत्व- कमलेश मान्टा के०एम०जी०
एक पेड़ हमें छावं देता है तरह तरह की औषधि देता है,पेड़ ऑक्सीजन देता है,पेड़ भूस्खलन होने से बचाता है। पूर्ण रूप से कहूँ तो पेड़ मानव का जीवन है। कहा जाता है कि जल ही जीवन है लेकिन जल स्रोत भी तभी है जब पेड़ होंगे। अगर पेड़ नही होगे तो जल स्रोत भी सूख जाएंगे। एक अच्छा और समृद्ध पर्यावरण को बनाने में पेड़ की बहुत बड़ी भूमिका है। पेड़ को बचाना भी हमारा कर्तव्य है। पेड़ में ही सबका जीवन है वो चाहे मानव हो व जीव जन्तु।

अपनी आवश्यकता के लिए अगर एक पेड़ काट भी लिया तो उसके बदले 100 पेड़ लगाने चाहिए।
पर्यावरण व जीवजन्तु के जीवन को बचाने के लिए पौधरोपण प्रक्रिया करते रहना चाहिए।
पेड़ पौधों से ही हमारे चारों ओर का आवरण हरियाली युक्त व मनोहर लगता है।
एक विद्यार्थी होने के नाते आप सभी से यही कहना चाहूंगा कि पर्यावरण को बचाने के लिए अपना पूर्ण सहयोग दें और आस पड़ोस गांव के सभी लोगो को इसके लिए प्रोत्साहित करें।
पर्यावरण को नष्ट होने से बचाएं।
विश्व पर्यावरण दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं...

#के०एम०जी० रोहड़ू क्षेत्र से

हरा भरा हिमाचल

Sunday, May 10, 2020

माँ ही मंदिर है माँ ही तीर्थ है - Kamlesh Manta Kmg

              माँ ही मन्दिर है माँ ही तीर्थ है          -

   
          मैं कमलेश मान्टा के०एम०जी० आज सम्पूर्ण माताओं को शत-शत नमन करता हूँ। आज 10 मई ,रविवार मातृ दिवस है इस अवसर पर एक छोटा सा लेख प्रस्तुत कर रहा हूँ।
प्रथम गुरु के रूप में अपनी संतानों के भविष्य निर्माण में मां की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। हर एक के जीवन में माँ एक अनमोल इंसान के रूप में होती है जिसके बारे में शब्दों से बयाँ नहीं किया जा सकता है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान हर किसी के साथ नहीं रह सकता इसलिए उसने माँ को बनाया। एक माँ हमारे जीवन की हर छोटी बड़ी जरूरतांे का ध्यान रखने वाली और उन्हें पूरा करने वाली देवदूत होती है। कहने को वह इंसान होती है, लेकिन भगवान से कम नहीं होती। वह ही मन्दिर है, वह ही पूजा है और वह ही तीर्थ है। तभी ई. लेगोव ने कहा है कि इस धरती पर मां ही ऐसी देवी है जिसका कोई नास्तिक नहीं। यही कारण है कि समूची दुनिया में मां से बढ़कर कोई इंसानी रिश्ता नहीं है। वह सम्पूर्ण गुणों से युक्त है, गंभीरता में समुद्र और धैर्य में हिमालय के समान है। उसका आशीर्वाद वरदान है। जरा कभी मां के पास बैठो, उसकी सुनो, उसको देखो, उसकी बात मानो। उसका आशीर्वाद लेकर, उसके दर्शन करके निकलो। फिर देखो, जो चाहोगे मिलेगा- सुख, शांति, शोहरत और कामयाबी। ध्यान रहे, मां का दिल दुखाने का मतलब ईश्वर का अपमान है।

संसार महान् व्यक्तियों के बिना रह सकता है, लेकिन मां के बिना रहना एक अभिशाप की तरह है। इसलिये संसार मां का महिमामंडन करता है, उसके गुणगान करता है, इसके लिये मदर्स डे, मातृ दिवस या माताओं का दिन चाहे जिस नाम से पुकारें दिन निर्धारित है।
मातृ दिवस-समाज में माताओं के प्रभाव व सम्मान का उत्सव है। मां शब्द में संपूर्ण सृष्टि का बोध होता है। मां के शब्द में वह आत्मीयता एवं मिठास छिपी हुई होती है, जो अन्य किन्हीं शब्दों में नहीं होती। मां नाम है संवेदना, भावना और अहसास का। मां के आगे सभी रिश्ते बौने पड़ जाते हैं। मातृत्व की छाया में मां न केवल अपने बच्चों को सहेजती है बल्कि आवश्यकता पड़ने पर उसका सहारा बन जाती है। समाज में मां के ऐसे उदाहरणों की कमी नहीं है, जिन्होंने अकेले ही अपने बच्चों की जिम्मेदारी निभाई। मां रूपी सूरज चरेवैति-चरेवैति का आह्वान है। उसी से तेजस्विता एवं व्यक्तित्व की आभा निखरती है। उसका ताप मन की उम्मीदों को कभी जंग नहीं लगने देता। उसका हर संकल्प मुकाम का अन्तिम चरण होता है। मातृ दिवस सभी माताओं का सम्मान करने के लिए मनाया जाता है। एक बच्चे की परवरिश करने में माताओं द्वारा सहन की जानें वालीं कठिनाइयों के लिये आभार व्यक्त करने के लिये यह दिन मनाया जाता है।
एक शिशु का जब जन्म होता है, तो उसका पहला रिश्ता मां से होता है। एक मां शिशु को पूरे 9 माह अपनी कोख में रखने के बाद असहनीय पीड़ा सहते हुए उसे जन्म देती है और इस दुनिया में लाती है। इन नौ महीनों में शिशु और मां के बीच एक अदृश्य प्यार भरा गहरा रिश्ता बन जाता है। यह रिश्ता शिशु के जन्म के बाद साकार होता है और जीवनपर्यन्त बना रहता है। मां और बच्चे का रिश्ता इतना प्रगाढ़ और प्रेम से भरा होता है, कि बच्चे को जरा ही तकलीफ होने पर भी मां बेचैन हो उठती है। वहीं तकलीफ के समय बच्चा भी मां को ही याद करता है। मां का दुलार और प्यार भरी पुचकार ही बच्चे के लिए दवा का कार्य करती है। इसलिए ही ममता और स्नेह के इस रिश्ते को संसार का खूबसूरत रिश्ता कहा जाता है। दुनिया का कोई भी रिश्ता इतना मर्मस्पर्शी नहीं हो सकता। डेविट टलमेज ने कटू सत्य को उजागर किया है कि माँ एक ऐसा बैंक हैं जहाँ हम अपने चोटों और परेशानियों को जमा कर के रखते हैं।
मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

के०एम०जी०
रोहड़ू क्षेत्र से

के०एम०जी० मन की बात भाग-१७

Tuesday, January 28, 2020

सांगटी" एक नर्क भरी दास्ताँ !..Himachal Pradesh University Summer Hill, shimla

सांगटी" एक नर्क भरी दास्ताँ !
- January 28, 2020

सीलन भरे कमरे, टीप टीप बरसता पानी, जहां धूप की रोशनी तो मानो एक अद्वितीय कल्पना की तरह है जिसका इस युग में पहुंच पाना तो हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले विद्यार्थियों का एक सपना ही रह जायेगा । जी हां बात "हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय" के साथ सटे गांव "सांगटी" की है जिसे गांव कहें शहर कहें या जाड़ा कहें यह कह पाना मुश्किल है क्यूंकि साल के 12 महिनों में यहां एक ही ऋतु पायी जाती है जिसे "शीत ऋतु" के नाम से जाना जाता है । नि:सन्देह अगर इस गांव को हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय का "दिल" कहें तो यह उपाधि देना भी गलत नहीं होगा। 1970 से विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद से ही यह गांव इस विश्वविद्यालय में पढ़ रहे सबसे प्रखर और बुद्धिजीवी छात्रों का एक अस्थायी घर और अड्डा माना जाता है जो खास तौर पर 2012-13 के बाद चर्चा में आया जब विश्वविद्यालय के छात्रावासों से निकाले गये छात्रों का पलायन इस छोटे से गांव में हुआ जहां एक छोटे से कमरे का किराया मात्र 500 से 1000 रुपये हुआ करता था। कितने ही प्रोफेसर, प्रशासनिक अधिकारी, नेेेेता और न जाने देश-प्रदेश का ऐसा कौन सा क्षेत्र या व्यवसाय होगा जहां इस गांव में रहकर विश्वविद्यालय के दिनों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों ने सफलता की उंचाईयां नहीं छुई होंगी ।

आखिर "सांगटी" क्यूँ है खास ?

हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में कुल 15 हॉस्टल हैं जिसमें 4 बॉयस और 11 गर्लस हॉस्टल हैं जिसमें लगभग 1800 विद्यार्थी रहते हैं । विश्वविद्यालय में हर साल लगभग 3 से 4 हज़ार विद्यार्थी विभिन्न विभागों में प्रवेश लेते हैं जिसका सीधा सा मतलब यह है की 50 से 60% विद्यार्थियों को हॉस्टल की सुविधा नहीं मिलती है और उन्हें विश्वविद्यालय परिसर के आसपास किराये का कमरा लेकर रहना और पढ़ना पड़ता है । इसलिये विश्वविद्यालय के जो "आवासीय छात्र" हैं जिन्हें "डे सकॉलर" भी कहा जाता है का एक बड़ा प्रतिशत हिस्सा इसी गांव में रहता है जो विश्वविद्यालय परिसर के सबसे नजदीक है ।

मजबुरी और मनमानी :

छात्रों की बढ़ती तादात और हॉस्टल न मिलने की मजबुरी के कारण इस गांव में पिछ्ले 5-6 सालों में लगातार नई इमारतों और कमरों का निर्माण हो रहा है जिसमें बहुत से छात्र रहते हैं । कमरों की माँग इतनी बढ़ गयी है कि यहां की जमीन के मालिकों ने 5 से 6 मंज़िला मकान खड़ा कर दिया है। जंगल के बीच होने के कारण यहां सूरज की रौशनी भी मुश्किल से नसीब होती है लेकिन मजबुरी के चलते छात्रों को यहां कमरे लेने ही पड़ते हैं । इसी मजबुरी का फायदा उठाकर यहां के मकान मालिक चंडीगढ़ और दिल्ली जैसे शहरों की तर्ज पर मनचाहा किराया वसूल कर रहे हैं । महंगी शिक्षा और शिमला की महंगाई के चलते कई छात्र जिनको हॉस्टल नहीं मिल पाता वह अपने घर की आर्थिक स्थिति के मारे प्रवेश परीक्षा पास करने के बाद भी प्रवेश नहीं ले पाते और मजबूरन उन्हें पढ़ाई छोड़ना पड़ती है । विडम्बना तो यह है कि यह इलाका एक गांव है जो "शिमला नगर निगम" के बजाय "शिमला ग्रमीण" के क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत आता है जिससे मकान मालिक खुब चांदी लुट रहे हैं क्यूंकि मकान का टैक्स जो नहीं चुकाना पड़ता । ग्रमीण क्षेत्र होने का कारण यहां के मकान मालिक राजाओं के समान जिंदगी जी रहे हैं । मजबुरी की नस पकड़ कर माननीय मालिक लोग एक छोटे से सीलन भरे कमरे का 4 से 5 हज़ार किराया वसूल रहे हैं जहां ना ढंग से पानी की व्यव्स्था है, ना बिजली की व्यव्स्था है और ना जहां धूप के दीदार होते हैं । यहां सबसे मजेदार तो कमरों की दिवारें, फर्श और सबकी बेस्ट फ्रेंड सीलन और ठंड होती है जिसका दुख और दर्द सिर्फ वही लोग समझते हैं जो बेचारे पिछ्ले कई सालों से मजबुरी के मारे यहां रह रहे हैैं। नमी और सूरज की रोशनी न पहुंचने के कारण यहां बारह महीने ठंड ही पायी जाती है ।

विश्वविद्यालय स्थापना का उद्देश्य ?

200 एकड़ में फैले हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय की स्थापना जब 22 जुलाई 1970 को की गयी थी तो इसका मात्र उद्देश्य न केवल प्रदेश के गरीब लोगों, पिछड़े वर्ग के छात्रों को शिक्षा प्रदान कराना था बल्कि एक पहाड़ी, ग्रमीण और कृषक राज्य होने के चलते शिक्षा के मौलिक अधिकार को गरीब से गरीब वर्ग के छात्रों को पहुंचाना भी था जिससे की प्रदेश के होनहार और मेहनती छात्र खुद की काबिलियत का इस्तेमाल देश की उन्नति के लिये कर सकें । विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले अधिकतर छात्र प्रदेश के ग्रमीण और गरीब परिवार से आते हैं । 21वीं सदी में जहां लगातार "शिक्षा के निजीकरण और व्यापारीकरण" से शिक्षा महंगी हो रही है उससे उच्च शिक्षा ग्रहण करना लगभग एक चुनौती बन गया है ।

आगे क्या किया जा सकता है ?

विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले सभी छात्रों को इस विषय में अपनी आवाज़ उंची करनी पड़ेगी खासकर जो हॉस्टल की सुविधाओं से वंचित रह जाते हैं और विश्वविद्यालय प्रशासन से लेकर सभी छात्र संगठनों को छात्रों के आर्थिक अधिकारों के रक्षा हेतु इसके लिये आगे आना चाहिये । समस्या सबके सामने है क्यूंकि यह समस्या न केवल "सांगटी गांव" की है बल्कि विश्वविद्यालय परिसर के आसपस के सभी इलाकों की है जहां गरीब छात्रों की मजबुरी का फायदा उठा कर मकान मलिक मनचाहा किराया वसूल रहे हैं । जिन कमरों का कोई एक हज़ार भी देना पसंद ना करे उसका हर महीने 4 से 5 हज़ार देना पड़ रहा है और 2 कमरों के किराये का तो क्या ही कहना उनके दाम तो ऊँचाइयाँ छू रहे हैं जो 7 से 12 हज़ार के बीच में मिल रहे हैं । सुविधायें कम और किराये का अनुपात इतना ज्यादा है कि इंसानियत भी खुद से शरमा जाये । प्रदेश सरकार और माननीय उच्च न्यायालय को भी इस समक्ष स्वतः संज्ञान लेना चाहिये और "हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय परिसर" के समीप के इलाकों के मकानों का औचक निरीक्षण करना चाहिये और मकान और कमरे की हालत को देखकर किराये के अनुपात को निर्धारित करना चाहिये । छात्रों का आर्थिक शोषण ना हो इसके लिये विश्वविद्यालय प्रशासन को भी इसके संदर्भ में एक समिति का गठन करना चाहिये जो विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले प्रत्येक छात्र की समस्या को समझ कर उसका समाधान निकाल सके और विश्वविद्यालय परिसर के आसपास के इलाकों के मकान मालिकों को मकान की हालत और सुविधाओं के अनुरुप किराया वसूलने का दिशा निर्देश दे सकें । हर साल विश्वविद्यालय से हज़ारों छात्र पढ़कर निकलते हैं जो प्रदेश की राजनीतिक, प्रशासनिक सेवाओं से लेकर उच्च न्यायालय में अपनी कानूनी सेवायें दे रहे हैं लेकिन इस मुलभुत समस्या का कोई भी स्वतः संज्ञान नहीं ले रहा यह एक चिंता का विषय है ।

"मनमानी भी ना हो और किसी को हानि भी ना हो"।

Friday, January 17, 2020

मेरा जन्मदिन कल - आधुनिक युग में 'बर्थ डे' भूल गए लोग अपनी संस्कृति (Birthday Special)

के०एम०जी०मन की बात भाग-16
आज मैं आपको जन्मदिन की कुछ गलतियों से अवगत कराऊँगा।

हमारे देश में जन्मदिन मनाने की परम्परा है । हमारे शास्त्रों की मान्यता है कि मानव जन्म अनेक पुण्यों के बाद मिलता है । हमारे यहाँ प्रार्थना की गई है कि हम कर्म करते हुए सौ वर्ष जीयें ।

संभवत: पहले यह परम्परा राजा महाराजाओं से प्रारम्भ हुई होगी और फिर जनता में आई । अब तो जन्मदिन मनाने का आम रिवाज है । नेताओं के जन्मदिन राष्ट्रीय स्तर पर मनाए जाते हैं और सामान्य व्यक्तियों के पारिवारिक स्तर पर ।

कल 18 जनवरी है और मेरा जन्मदिन भी । मैं 23 साल का हूँ और कल 24वीं साल में प्रवेश करुँगा। जन्मदिन मेरे लिए सबसे खुशी का दिन होता है। परिवार वाले सुबह-सुबह जन्म दिन की बधाई देते हैं।

आजकल जन्मदिन कौन मना रहा है सभी बर्थडे मना रहे हैं।प्राचीन वैदिक परम्परा में जन्मदिन के दिन नित्य कर्म के बाद देवपूजन, ग्रहपूजन करके दान देने की परम्परा है और बड़ों का आशीर्वाद लिया जाता है जबकि बर्थडे को बाजारी केक पर अपना नाम लिखवा कर स्वयं चाकू से काट देना, मोमबत्ती को फूंक मारकर बुझा देना,यह अंग्रेजों की परम्परा रही है।

आज एक रिवाज/फैशन/दिखावा बन गया हैं, जन्मदिन पंचांग तिथि से न मनाकर अवैज्ञानिक तारीख से मनाना ।

जन्मदिन ता विवाह वाले दिन केक काटकर मुंह के लगाना हिन्दू समाज में शुभ दिन में कुछ काटा नहीं जोड़ा जाता है ।

मोमबत्ती बंद कि जाती है जबकि हिन्दू धर्म में शुभ दिन में दीपक जलाए जाते है बंद नहीं किए जाते है ।

जन्म दिन पर दीपक बंद करने का अर्थ है कि मेरे अगले वर्ष में अंधेरा रहे

आज हमलोग जिस संस्कृति के लिए पुरे दुनिया में जाने जाते है यथा वसुधैव कुटुंबकम् ,सर्वे भवन्तु सुखिनः, तमसो माँ ज्योतिर्गमय, , अभिवादनशीलस्य - वृद्धोपसेविनः आयु आयुर्विद्यायशोबलम्, दीप से दीप जले
इत्यादि ऋषि वचन की वैज्ञानिकता को भूल गए है।

यही नहीं आज की युवा पीढ़ी whatappsके माध्यम से तमसो माँ ज्योतिर्गमय अर्थात "जीवन के समस्त अन्धकार को मिटाकर प्रकाश फैला दो माँ " के स्थान पर युवा पीढ़ी यह व्याख्या करती है " तू सो जा माँ मैं ज्योति ( girl friend ) के पास जा रहा हू" अब आप ही बताये हमारा भविष्य का समाज किस ओर जा रहा है।
आज हम सब पाश्चात्य संस्कृति को अपनाकर अपने आप में गर्व महशुश करते है परन्तु यह नहीं सोचते की होटल या माल में अपने दोस्तों के साथ जन्मदिन मनाने के लिए जरूरत से ज्यादा पैसे मांगने और न मिलने पर आत्महत्या जैसी घटना को, समाज के सामने प्रस्तुत किया जा रहा है उसके जिम्मेदार कौन है ? वस्तुतः हम सब स्वयं ही है क्योकि कही न कही यह सब हमारे रहन सहन एवं तौर तरीके के प्रभाव के कारण ही ऐसा हो रहा है।


भारत में अंग्रेजों के आगमन के बाद भी परंपरागत तिथियों के अनुसार ही जन्मदिन मनाने की परंपरा थी|

परंतु अब बहुत से परिवारों में पाश्चात्य तिथियों के अनुसार ही जन्मदिवस मनाने का प्रचलन हो गया।

भारतीय संस्कृति का हर पहलू लोककल्याण से जुड़ा है।

वर्तमान समय में पूरा विश्व समुदाय हमारे वैदिक विज्ञान की श्रेष्ठता स्वीकार करने लगा है वही हम सब उनके शैली को अपनाकर गर्व महसूस करते हैं जन्मदिन पर केक काटना, मोमबत्तियाँ जलाकर बुझाना, जन्म दिन के जश्न में शराब मांस का भक्षण करना इत्यादि कार्यक्रम को हमारी भारतीय संस्कृति के अनुरूप नहीं है। आज हम मोमबत्ती जलाते है पुनः उसे बुझाकर हैप्पी बर्थडे कहते है। भारतीय संस्कृति में प्रत्येक शुभ कार्य का प्रारम्भ दीप प्रज्ज्वलित कर करने का विधान है प्रज्वलित दीप को कभी भी बुझाया नहीं जाता है बल्कि अखण्ड जोत जलाया जाता है। प्रज्वलित दीप को बुझाना तो अशुभ माना गया है। बच्चे हमारे कुलदीप हैं, उनके यशकीर्ति तथा उज्ज्वल भविष्य की कामना दीपक जला कर करनी चाहिए, मोमबत्तियाँ बुझाकर नहीं।

यही कारण है कि मैं अपना जन्मदिन केक काटकर और मोमबत्ती भुझाकर नही मानता।

के०एम०जी०
रोहड़ू क्षेत्र से....

Thursday, January 16, 2020

माँ बाप का स्थान आधुनिक युग में - Kamlesh Manta Kmg

*के०एम०जी० मन की बात भाग-१४* आज में *कमलेश मान्टा के०एम०जी०*
आप सभी से माँ बाप की लघु भूमिका बताता हूँ। शीर्षक- *आज के समय में बच्चों के लिए माँ बाप का स्थान* 

अधिकतर देखा जाता हैं कि एक बच्चा अपने माँ बाप से अलग रहते हैं।जब माँ बाप बुढ़ापे तक पहुंच जाते है तो उनको किसी का सहारा नही मिलता।
आज के समय मे देखा जाये तो बच्चे अपने ममी पापा की बात नही मानते।

माँ बाप के चरणों मे स्वर्ग है । मै न मन्दिर जाता हूँ न मस्जिद मेरे भगवान तो घर  में है और वो मेरे ममी पाप ही है।आज हम जहाँ भी है जैसे भी है सिर्फ माँ बाप की वजह से है।
माँ बाप को कष्ट देना मतलब भगवान को कष्ट देना होता है।
कुछ भी गलत करने से पहले हम भगवान से डरते है लेकिन माँ बाप से नही। भगवान दुःखी हो वो नही दिखते लेकिन माँ बाप दुःखी हो वो तो दिखते हैं फिर क्यों एक बच्चा अपने माँ बाप को दुःख देते हैं क्यों गलत काम करते हैं क्यों जुठ बोलते है क्यों उनसे अलग होते हैं
माँ बाप ने अपने सहारे के लिए बच्चे को पाला होता है लेकिन वो बच्चा माँ बाप को घर से निकाल देता है।
आज कल के बच्चे नशे में इतना डुब चुके हैं कि उन्हें मा बाप की कोई परवाह नही है।
एक आदर्श बेटा वही है जो सबको अपने माँ बाप की तरह समझे अपने माँ बाप की तरह उनकी सेवा करें।
हर बच्चे अपने माँ बाप से प्यार करते है लेकिन जुठ भी बोलते है।

मेरी सोच मेरे विचार आप सब तक।
धन्यवाद।

*कमलेश मान्टा के०एम०जी०*

रोहड़ू क्षेत्र से...

पिता - बिना किसी स्वार्थ का रिश्ता (के०एम०जी०) Father Day Special

# Father Day Special  *के०एम०जी०मन_की_बात_भाग-२०* मैं कमलेश मान्टा के०एम०जी०  आज आप लोगो को ईश्वरीय रूप पिता का हमारे जीवन मे क्या महत्व ...